कुंभ में 14 अखाड़े की पेशवाई: फेसबुक लाइव पर संतो ने दिये प्रवचन,भक्तों ने ली सेल्फी

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हरिद्वार। कोरोना की वजह से हरिद्वार नहीं आ सके श्रद्धालुओं ने फेसबुक और वाट्सएप पर वीडियो काॅल के जरिये पेशवाई को लाइव देखा। पेशवाई के दौरान साधु संतों के साथ उनके रथ पर सवार अनुयायी भी वीडियो काॅल से लाइव करते रहे। सोशल मीडिया के जरिये देश-विदेश में सैकड़ों भत्तफों ने बुधवार को निरंजनी अखाड़े की पेशवाई लाइव देखी। वहीं संतों ने फेसबुक लाइव पर प्रवचन भी दिए साथ ही मौके पर मौजूद भत्तफों में मोबाइल कैमरे से सेल्फी लेने और पेशवाई की तस्वीर लेने की होड़ लगी रही। जूना अखाड़ा में मुख्यमंत्री ने हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी मायादेवी की पूजा अर्चना कर कुंभ 2021 के सफल, कुशल व निर्विन संपन्न होने का आशीर्वाद मांगा। दत्तात्रेय चरणपादुका के दर्शन कर मुख्यमंत्री ने नारियल फोड़कर जूना अखाड़ा की धर्मध्वजा स्थापित की। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, आ“वान अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा की धर्मध्वजा स्थापित किए जाने की तैयारियां बुधवार सुबह से चल रही थी। धर्मध्वजा की स्थापना शाम चार बजे की जानी थी। जिसमें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के शामिल होने की संभावना थी। हालांकि मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी कार्यक्रम में इसका उल्लेख नहीं था। लेकिन, मुख्यमंत्री हेलीपैड से सीधे जूना अखाड़ा पहुंच गए और अखाड़े के इष्टदेव भगवान गणेश की पूजा अर्चना के बाद धर्मध्वजा स्थापना कार्यक्रम का आरंभ किया। मुख्यमंत्री ने किन्नर अखाड़े के संतों और महामंडलेश्वरों से भी भेंट की और कुंभ मेले की व्यवस्थाओं पर चर्चा की। जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरिगिरि महाराज, अंतरराष्ट्रीय सभापति श्रीमहंत प्रेम गिरि महाराज, राष्ट्रीय सचिव श्रीमहंत मोहन भारती, श्रीमंहत महेशपुरी, श्रीमहंत शैलेन्द्र गिरि ने उनका स्वागत किया।
कुंभ में 14 अखाड़े की पेशवाई
महाकुंभ का मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। इस मेले का आयोजन हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में किया जाता है। कुंभ में शामिल होने के लिए 14 अखाड़ों की पेशवाई भी निकाली जाती है। पेशवाई यहां अखाड़ों के कुंभ में धूमधाम से पहुंचने को कहते हैं। अब तक कुंभ में 13 अखाड़े शामिल होते थे लेकिन इस बार एक नए अखाड़ा को शामिल किया गया है।14 अखाड़ों देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।
श्रीनिरंजनी अखाड़ा:श्रीनिरंजनी अखाड़ा की स्थापना 826 ई. में गुजरात के मांडवी में हुई थी। इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिक हैं। इनमें दिगंबर, साधु, महंत व महामंडलेश्वर होते हैं। इनकी शाखाएं इलाहाबाद, उज्जैन, हरिद्वार, त्रृयंबकेश्वर व उदयपुर में हैं।
श्रीजूनादत्त या जूना अखाड़ाः जूना अखाड़ा की स्थापना 1145 में उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग में हुई थी। इसे भैरव अखाड़ा के नाम से भी जाना जाता है। इनके ईष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। इसका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर माना जाता है। हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास इनका आश्रम है। इस अखाड़े के नागा साधु जब शाही स्नान के लिए संगम की ओर बढ़ते हैं तो मेले में आए श्र(ालुओं समेत पूरी दुनिया की सांसें उस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए रुक जाती हैं। इस अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज हैं।
श्रीमहानिर्वाण अखाड़ाः श्रीमहानिर्वाण अखाड़ा की स्थापना 671 ई में हुई थी। कुछ लोगों का मत है कि इसका जन्म बिहार-झारखण्ड के बैजनाथ धाम में हुआ था, जबकि कुछ हरिद्वार में नीलधारा के पास मानते हैं। इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं। इतिहास के अनुसार, सन् 1260 में महंत भगवानंद गिरी के नेतृत्व में 22 हजार नागा साधुओं ने कनखल स्थित मंदिर को आक्रमणकारी सेना के कब्जे से छुड़ाया था।
श्री अटल अखाड़ाः श्री अटल अखाड़ा को 569 ई. में गोंडवाना क्षेत्र में स्थापित किया गया। इनके ईष्ट देव भगवान गणेश हैं। यह प्राचीन अखाड़ों में से एक माना जाता है। इसकी मुख्य पीठ पाटन में है लेकिन आश्रम कनखल, हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन व तृयंबकेश्वर में भी हैं।
श्री आ“वान अखाड़ाःश्री आ“वान अखाड़े की स्थापना 646 में हुई थी और 1603 में पुनर्संयोजित किया गया। इनके ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन दोनो हैं। इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है। इसका आश्रम )षिकेश में भी है। इस समय स्वामी अनूप गिरी और उमराव गिरी इस अखाड़े के प्रमुख संतों में से हैं।
श्री आनंद अखाड़ाःश्री आनंद अखाड़े की स्थापना 855 ई. में मध्यप्रदेश के बेरार में हुई थी। इसका केंद्र भी वाराणसी है। इसकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन में हैं।
श्री पंचाग्नि अखाड़ाः इस अखाड़े की स्थापना 1136 में हुई थी। इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है। इनके सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रह्मचारी, साधु व महामंडलेश्वर शामिल हैं। परंपरानुसार इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन व तृयंबकेश्वर में हैं।
श्री नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ाः गोरखनाथ अखाड़े की स्थापना 866 ई. में अहिल्या-गोदावरी संगम पर हुई थी। इस अखाड़े के संस्थापक पीर शिवनाथजी हैं। इनके मुख्य देवता गोरखनाथ हैं और इनमें बारह पंथ शामिल हैं। यह संप्रदाय योगिनी कौल नाम से प्रसि( है और इनकी तृयंबकेश्वर शाखा तृयंबकंमठिका नाम से प्रसि( है।
श्री वैष्णव अखाड़ाः बालानंद अखाड़ा ई. 1595 में दारागंज में श्री मध्यमुरारी में स्थापित हुआ। समय के साथ इनमें निर्माेही, निर्वाणी, खाकी आदि तीन संप्रदाय बने। इनका अखाड़ा तृयंबकेश्वर में मारुति मंदिर के पास था। 1848 तक शाही स्नान तृयंबकेश्वर में ही हुआ करता था परंतु 1848 में शैव व वैष्णव साधुओं में पहले स्नान कौन करे इस मुद्दे पर विवाद हुआ। श्रीमंत पेशवाजी ने यह झगड़ा मिटाया। उस समय उन्होंने तृयंबकेश्वर के नजदीक चक्रतीर्थ पर स्नान किया। 1932 से ये नासिक में स्नान करने लगे। आज भी नासिक में ही इनका स्नान होता है।
श्री उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ाः उदासीन अखाड़े की स्थापना सन् 1910 में हुई थी। इस संप्रदाय के संस्थापक श्रीचंद्रआचार्य उदासीन हैं। इनमें उदासीन साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की संख्या ज्यादा है। इस अखाड़े की शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, तृयंबकेश्वर, भदैनी, कनखल, साहेबगंज, मुलतान, नेपाल व मद्रास में हैं।
श्री उदासीन नया अखाड़ाः इस अखाड़े की स्थापना सन् 1710 में हुई थी। इसे बड़ा उदासीन अखाड़ा के कुछ सांधुओं ने अलग होकर स्थापित किया था। इनके प्रवर्तक मंहत सुधीरदासजी थे। इनकी शाखाएं प्रयाग हरिद्वार, उज्जैन और तृयंबकेश्वर में हैं।
श्री निर्मल पंचायती अखाडाः निर्मल अखाड़ा की स्थापना सन् 1784 में हुई थी। श्रीदुर्गासिंह महाराज ने इसकी स्थापना की। इनकी ईष्ट पुस्तक श्री गुरुग्रन्थ साहिब है। इनमें सांप्रदायिक साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की संख्या बहुत है। इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और तृयंबकेश्वर में हैं।
निर्माेही अखाड़ाः निर्माेही अखाड़े की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। इस अखाड़े के मठ और मंदिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार में हैं। माना जाता है कि प्राचीन काल में लोमश नाम के )षि थे, जिनकी आयू अखंड है कहते है जब एक हजार ब्रह्मा समाप्त होते हैं तो उनके शरीर का एक रोम गिरता है। आचार्य लोमश )षि के ने भगवान शंकर के कहने पर गुरू परंपरा पर तंत्र शास्त्र पर आधारित सबसे पहले आगम अखाड़े की स्थापना की। इस अखाडे के साधू बहुत ही रहस्यमयी होते है, पूजा-ध्यान करते हुऐ वो भूमि का त्याग कर अधर मे होते हैं।
पेशवाई में किन्नर अखाड़ा रहा आकर्षण का केंद्र
हरिद्वार।गुरुवार को निकलने वाली जूना व अग्नि अखाड़े की पेशवाई में किन्नर अखाड़ा भी आकर्षण का केंद्र रहेगा। जूना और अग्नि अखाड़े के साथ ही किन्नर अखाड़ा की भी धर्म ध्वजा स्थापित हो गई है। किन्नर अखाड़ा की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने कहा कि हमारे सनातनी बच्चे हमारे सनातन धर्म को समझें। सनातन धर्म माॅडर्न धर्म है, स्वयं हमारे महादेव लिंग समानता की बात करते हैं, हम सब इसी धर्म के छोटे-छोटे बच्चे हैं। किन्नर अखाड़ा की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने कहा कि हरिद्वार की धरती पर धर्म ध्वजा स्थापित, पेशवाई और गंगा स्नान करना किन्नर अखाड़ा के लिए स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। हरिद्वार कि इस धरती पर गंगा मैया के आशीर्वाद से हमारी धर्म ध्वजा स्थापित हुई है और गंगा मैया के आशीर्वाद से ही हम जूना अखाड़े के साथ पेशवाई निकालकर शाही स्नान भी करेंगे। त्रिपाठी ने कहा कि किन्नर अखाड़े में महिला और पुरुष सब हैं, हमारे अखाड़े सबके लिए खुला दरबार है उन्होंने कहा कि समाज में लैंगिक भेदभाव को किन्नर समाज से ज्यादा कोई नहीं जानता है। कटाक्ष क्या होता है यह भी किन्नर समाज से ज्यादा कोई नहीं झेलता है उन्होंने कहा कि सभी आडंबर से बचते हुए किन्नर अखाड़ा लगातार आगे बढ़ेगा।

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