सबसे तेजतर्रार तालिबानी कमांडर है “शेरू” : इंडियन मिलिट्री एकेडमी में ट्रेनिंग लेकर अफगानिस्तान आर्मी में शामिल हो गया था

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देहरादून(दर्पण ब्यूरो)। सोशल मीडिया पर इन दिनो तालिबानियों द्वारा हाईजैक किये गये अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज होने की खबरें दहशत और आतंक की बर्बर गतिविधियों को बयां कर रही है। वहीं अब काबुल उनके कब्जे में है और तालिबान की सरकार का गठन भी जल्द होने वाला है। अपने ही देश में हथियारो से लैस तालिबानी लड़ाकों की गतिविधियों से महिलाओं और आम नागरिकों में जिंदगी को बचाने की होड़ मची हुई है। अफगानिस्तान में फंसे कई देशो के नागरिक वहां से अपने देश लौटने के लिये अपील कर रहे है। ऐसे में देशवासियों की सुरक्षा के लिये भारत से भी राहत और बचाव अभियान शुरू किया गया है। सैकड़ों लोगों को ऐयरलिफ्रट किया गया है। उत्तराखंड सरकार ने अफगानिस्तान में फंसे उत्तराऽंड के 110 व्यत्तिफ़यों की सूची विदेश मंत्रलय को भेज दी है। प्रदेश सरकार ने विदेश मंत्रलय से अनुरोध किया है कि उत्तराखड के अन्य किसी निवासी के संबंध में जानकारी मिलती है, तो उसे राज्य के साथ भी साझा किया जाए। अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद वहां के हालत काफी बदले हुए हैं। इससे अफगानिस्तान में काम कर रहे उत्तराखड वासियों के स्वजन चिंतित हैं। वे सरकार से अपनों को वापस लाने की गुहार लगा रहे हैं। प्रदेश सरकार भी इस मामले में शुरू से ही विदेश मंत्रलय के संपर्क में है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस मसले पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के अलावा विदेश मंत्रलय से फोन पर संपर्क कर चुके हैं। उनके निर्देश पर शासन ने गुरुवार को उपलब्ध जानकारी के आधार पर 110 नामों की सूची बनाकर विदेश मंत्रलय को भेज दी। इसके साथ ही शासन ने सभी जिलाधिकारियों और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को पत्र भेजकर अपने जिलों से भी अफगानिस्तान में फंसे प्रदेशवासियों के संबंध में जानकारी एकत्र करने को कहा है। शासन ने अफगानिस्तान में फंसे व्यत्तिफ़यों के स्वजन के लिए टोल फ्री नंबर 112 पर भी इसकी सूचना देने की अपील की है। वहीं दूसरी तरफ इस बात को लेकर पिछले दो-तीन दिन से तालिबान के कुछ प्रमुख नेताओं की काफी चर्चा भी हो रही है। सबसे ज्यादा पढ़ा-लिख व तेजतर्रार तालिबानी कमांडर शेरू अफगानिस्तान की आर्मी को छोड़कर तालिबान में शामिल हो गया था। तालिबान के इन टाप कमांडरों में से एक है 60 वर्षीय शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई, जिसका करीब चार दशक पहले देहरादून से नाता रहा है। तब उन्हें शेरू नाम से पहचाना जाता था। वर्तमान में तालिबान में सेकेंड इन कमांड और प्रमुख वार्ताकार शेरू अस्सी के दशक में देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) का कैडेट रहा है। अकादमी में डेढ़ साल की प्री मिलिट्री ट्रेनिंग पूरी करने के बाद यह वर्ष 1982 में पास आउट होकर अफगान नेशनल आर्मी में बतौर लेफ्रिटनेंट शामिल हुआ था। बता दें कि अकादमी से पास आउट होने के बाद वह बतौर लेफ्रिटनेंट अफगान नेशनल आर्मी में शामिल हुआ और 14 साल तक आर्मी में तैनात रहा। तब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। वर्ष 1996 में सेना छोड़ के बाद वह तालिबान में शामिल हो गया। तालिबान को 2001 में सत्ता से हटाए जाने के बाद वह कतर की राजधानी दोहा में रहा। स्तानिकजई को कट्टðर धार्मिक नेता कहा जाता है। वर्ष 2015 में उसे तालिबान के दोहा स्थित राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख बनाया गया। जिसके बाद उसने अफगान सरकार के साथ शांति वार्ता में भी हिस्सा लिया। इसके अलावा वह अमेरिका के साथ हुए शांति समझौते में भी शामिल रहा। स्तानिकजई जातीय रूप से पश्तून है। तालिबान की नई सरकार में अब उसे किस पद पर रऽा जाएगा फिलहाल इसकी जानकारी सामने नहीं आई है। तालिबान के अन्य प्रमुख नेताओं में शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई ऊर्फ शेरू को अधिक तेजतर्रार व समझदार माना जाता है। इसकी वजह यह कि अन्य की तुलना में वह ज्यादा पढ़ा-लिख है। भारत में उसने अंग्रेजी सीखी थी। राजनीतिक विज्ञान में मास्टर डिग्री भी उसने हासिल कर रखी है। इसके अलावा सेना में रहते हुए कई कोर्स भी किए। यही नहीं पाकिस्तान की ऽुफिया एजेंसी आइएसआइ से भी उसने प्रशिक्षण लिया हुआ है। भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) में देश के अलावा 30 मित्र देशों के कैडेटों को भी सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है। वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद अफगानिस्तान के कैडेटों को भी अकादमी में प्री-मिलिट्री ट्रेनिंग मिलनी शुरू हुई। तब से अब तक अफगानिस्तान के एक हजार से अधिक कैडेट सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर पास आउट हो चुके हैं। वर्तमान में भी 80 अफगान कैडेट आइएमए में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। बताया जाता है कि अफगान रक्षा अकादमी के लिए आयोजित परीक्षा में सफल रहने के बाद उसका आइएमए के लिए चयन हुआ था। अकादमी में सैन्य प्रशिक्षण के दौरान बैचमेट उन्हें शेरू नाम से बुलाते थे। भगत बटालियन की कैरेन कंपनी में तब 45 कैडेट सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे। बैच में शामिल रहे मेजर जनरल (सेनि) डीए चतुर्वेदी बताते हैं कि अन्य कैडेटों की तुलना में स्तानिकजई मजबूत कद काठी का था। 20 साल की उम्र में ही उसने रौबदार मूंछे रखी हुई थी। उस समय वह किसी कट्टðरपंथी विचारधारा से घिरा नहीं था। वह एक औसत अफगान कैडेट था जो अकादमी में प्री मिलिट्री ट्रेनिंग प्राप्त कर रहा था। एक अन्य बैचमेट कर्नल केसर सिंह शेखवत (सेनि) बताते हैं कि वह काफी मिलनसार था। वीकेंड पर वह लोग अक्सर पहाड़-जंगल की सैर पर निकल जाया करते थे। उन्हें आज भी याद है जब वह लोग ऋषिकेश गए और शेरू ने गंगा में डुबकी लगाई थी। उन्हें लगता है कि भारत से उसका यह रिश्ता आगे भारत व तालिबान के बीच बातचीत का माध्यम बन सकता है।

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