महेंद्र सिंह धोनी: अंतरराष्ट्रीय किकेट से अलविदा कहने से करोड़ों खेलप्रेमियों में मायूसी

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देहरादून। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट जगत में अभूतपूर्व योगदान देने के साथ ही भारत के कप्तान कपिल देव के बाद भारत को दूसरी बार विश्वकप का खिताब जिताने वाले लोकप्रिय बल्लेबाज महेंद्र सिंह धोनी ने किकेट से अलविदा कहने से करोड़ों खेलप्रेमियों में मायूसी छा गई है। सोशल मीडिया पर भारत को आखरी गेंद पर विश्वकप दिलाने के साथ ही उनके हेलीकॉप्टर शॉट के लिए हर कोई उन्हें याद कर रहा है। अपने शानदार प्रदर्शन के मशहूर हो चुके माही देश की नहीं विदेशी ऽेल प्रेमियों के दिलों पर भी राज करते रहे है। बता दें कि महेंद्र धोनी का उत्तराखंड से भी नाता है अल्मोड़ा में पैत्रिक गांव है तो वहीं देहरादून में ससुराल है। महेंद्र सिंह धोनी दून में अपना आशियाना बनाना चाहते हैं। इसके लिए सहस्त्रधारा के पास उन्होंने भूमि भी चिह्नित कर ली है। कई बार उनकी पत्नी साक्षी धोनी को परिवार के साथ इस भूमि का निरीक्षण करते भी देऽा गया है। महेंद्र सिंह धौनी इसी साल पत्नी साक्षी और बेटी जीवा के साथ उत्तराऽंड पहुंचे थे। उन्होंने यहां मसूरी में जमकर बर्फबारी का लुत्फ उठाया। धौनी मसूरी से करीब दस किलोमीटर दूर जबरऽेत में एक नवनिर्मित भवन में परिवार के साथ करीब चार दिन रहे। इस दौरान उन्होंने मीडिया से भी दूरी बनाए रऽी थी। उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत ने भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के सन्यास के बाद अपनी प्रतिक्रिया में लिखा है कि श्री महेंद्र सिंह धोनी के संदर्भ में एक विज्ञापन की कहावत कि ‘यह दिल मांगे मोर, 100 प्रतिशत सही चरितार्थ होती है। करोड़ों लोग धोनी को हमेशा ऽेलते देऽना चाहते हैं, मगर एक दिन तो श्री धोनी के अंतरराष्ट्रीयक्रिकेट से रिटायरमेंट की सूचना आनी ही थी, सच मानिये दूसरा धोनी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को मिलना बहुत मुश्किल है, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को महानतम् िऽलाड़ियों ने ऽेल के क्षेत्र में बहुत सारे रिकॉर्ड, बहुत सारी उपलब्धियां प्रदान की, मगर एक धोनीत्व, एक धोनी का विशेष टच केवल धोनी ही दे पाये, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को धोनी जैसा विशेष टच, अपनत्व केवल महेंद्र सिंह धोनी ही दे पाये।एमएस धोनी का मूल गांव उत्तराऽंड के अल्मोड़ा जिले के जैंती तहसील में है जबकि उनका पैतृक गांव ल्वाली है। ग्रामीणों को उम्मीद है कि अंतराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने वाले धोनी कभी अपने पैतृक गांव पहुंचेंगे। ग्रामीणों के मुताबिक, वर्ष 2004 में महेंद्र सिंह धोनी का परिवार आिऽरी बार अपने गांव आया था। गांव में पुरुषो की अपेक्षा महिलाओं की आबादी अधिक है। किक्रेटर महेंद्र सिंह धोनी के पिता पान सिंह ने 40 साल पहले अपना पैतृक गांव को छोड़ दिया था। वह रोजगार के लिए रांची चले गए। बाद में वह वहीं रहने लगे। हालांकि अभी धोनी के पिता धार्मिक आयोजनों में गांव में आते हैं। धोनी के चाचा घनपत सिंह भी अब गांव में नहीं रहते हैं। वह भी चार वर्ष पूर्व गांव से पलायन कर हल्द्वानी बस गए हैं। धौनी का परिवार वर्ष 2004 में गांव आया था। उत्तराऽंड गठन से पूर्व महेंद्र धौनी का अपने पैतृक गांव में जनेऊ संस्कार हुआ था। वहीं देरादून से माही का गहरा नाता रहा है। तत्कालीन सीएयू के सचिव पीसी वर्मा ने बताया कि देहरादून के रेंजर ग्राउंड में धोनी के क्रिकेटिंग शॉट्स ने लोगों को कायल कर दिया था, बल्ले से गेंद ऐसे छूटती थी मानो बंदूक से निकली गोली। पीसी वर्मा ने बताया कि वे पहले भी कई बार देहरादून क्रिकेट ऽेलने आए थे, लेकिन साल 2004 के दिसंबर के महीने धोनी ने क्रिकेट में डेब्यू में किया था। उस वत्तफ़ वो झारऽंड की तरफ से ऽेलने आए थे। पीसी वर्मा बताते हैं कि टूर्नामेंट के दौरान एक इंटरव्यू में उन्होंने रोहन गावसकर को अपना कॉम्पटीटर बताया था। उन्होंने कहा कि धोनी उस वत्तफ़ विकेट कीपिंग के साथ-साथ ओपन किया करते थे। उनका हर शॉट रेंजर्स मैदान से पार चला जाता था, उन्हें इस टूर्नामेंट में कई बार मैन ऑफ द मैच भी चुना गया और इससे पहले के टूर्नामेंट में मैन ऑफ दी सीरीज भी मिला।

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