- नतीजे के बाद बागेश्वर में अब डीएम के विरुद्ध प्रस्तावित जांच को लेकर बढ़ी उत्सुकता,
- भाकपा (माले) की शिकायत पर दिए गए थे जांच के आदेश
देहरादून। उपचुनाव का परिणाम घोषित होने के बाद भी बागेश्वर लगातार चर्चा में बना हुआ है। भाजपा की जीत के रंग-गुलाल में नहाने के बाद बागेश्वर के लोगों में इस बात की गहरी उत्सुकता है कि उपचुनाव संपन्न होने के बाद बागेश्वर डीएम अनुराधा पाल के विरुद्ध लगाए गए आरोप की जांच अब किस करवट बैठेगी ? क्या यह जांच अपने अंजाम तक पहुंचेगी अथवा इसे भी चुनाव के दौरान होने वाली विभिन्न शिकायतों की तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा? गौरतलब है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की उत्तराखंड इकाई के राज्य सचिव ने, भारत निर्वाचन आयोग के समक्ष एक शिकायत प्रस्तुत कर बागेश्वर की जिला अधिकारी अनुराधा पाल पर संवाददाता सम्मेलन करने से रोकने और शर्तें थोपने आरोप लगाया था। शिकायत प्राप्त होने के बाद भारत निर्वाचन आयोग ने बागेश्वर की जिला अधिकारी के विरुद्ध लगाए गए आरोपों की जांच के आदेश दिए थे। बताना होगा कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने चुनाव आयोग को दी गई शिकायत में कहा था ,कि हमने बागेश्वर की जिलाधिकारी को एक पत्र लिखकर पार्टी द्वारा एक सितंबर को आयोजित किए जाने वाले संवाददाता सम्मेलन की सूचना दी थी, लेकिन उन्होंने इसके लिए अपनी सहमति देने की बजाय उल्टा हमारे संवाददाता सम्मेलन करने के अधिकार पर ही सवाल उठा दिया। उनका तर्क था कि हमने बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव में अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था इसलिए हम चुनाव के दौरान राजनीतिक संवाददाता सम्मेलन नहीं कर सकते। इतना ही नहीं उन्होंने हम पर यह शर्त भी लगाई कि हमें संवाददाता सम्मेलन की सामग्री लिखित रूप से प्रशासन को देनी होगी -भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की उपरोत्त शिकायत को उत्तराखंड के मुख्य निर्वाचन अधिकारी वी षणमुगम ने बेहद गंभीरता से लिया था और कुमांउ आयुक्त को बागेश्वर की जिलाधिकारी अनुराधा पाल के खिलाफ शिकायत की जांच करने के निर्देश दिए थे। भाकपा (माले) द्वारा की गई शिकायत में लगाए गए आरोप के संबंध में जिलाधिकारी पाल का जवाब भी आया। उन्होंने कहा कि इस संबंध में जो भी निर्णय लिया गया, वह चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित नियमों के अनुरूप था। जिलाधिकारी ने आगे कहा कि अगर कुछ शर्तें लगाई गई हैं तो वे चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार हैं और इसमें आयोग की अनुमति भी है। इसके पीछे किसी राजनीतिक दल की संभावनाओं को कम करने अथवा अवसर से वंचित करने एवं अन्य किसी राजनीतिक दल को गैर वाजिब लाभ प्रदान करने की मंशा हरगिज नहीं थी। जाहिर है कि भाकपा (माले) बागेश्वर की डीएम अनुराधा पाल के उपरोत्त स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुई और उसने उपरोत्त मामले को भारत निर्वाचन आयोग के समक्ष उठाकर ही दम लिया। बहरहाल अब यह देखना खासा दिलचस्प होगा कि उपरोत्त मामले में कोई परिणाम निकलता है भी अथवा सारा मसला ढ़ाक के तीन पात वाली कहावत ही चरितार्थ करने वाला साबित होता है?
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