आयुर्वेदिक औषधि से 97 से अधिक कोरोना मरीजों को स्वस्थ कर चुके हैं डाॅक्टर मिश्रा
रुद्रपुर। आज पूरा विश्व कोविड-19 की महामारी से जूझ रहा है और इसके संक्रमण में आकर अब तक लाखों लोग समय से पहले अपनी जान गवा चुके है। कई देशों की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है और लाखों लोगों का रोजगार छिन गया और कारोबार बंद हो गए। कोविड-19 विश्व के वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों के सामने भले ही एक नई बीमारी के रूप में अबूझ पहेली बनकर सामने आया हो, लेकिन आयुर्विज्ञान में इसका उल्लेख सदियों पूर्व ही हो चुका था और इसके लक्षणों का भी बहुत विस्तृत रूप से वर्णन किया जा चुका था। वर्तमान चिकित्सा विज्ञान में भले ही कोरोना संक्रमण का अचूक उपचार उपलब्ध् न हो लेकिन आयुर्वेदिक के भारतीय ऋषि-मुनि ज्ञानियो ने सदियों पूर्व ही इसके लक्षणों के अनुसार इसका उपचार वर्णित कर दिया था। आज से लगभग 3000 वर्ष पूर्व लिखी गई चरक संहिता मे संतत एवं सतत ज्वर जैसी व्याधियों का उल्लेख किया गया था, जो वर्तमान में विश्वव्यापी महामारी बन चुकी कोरोना के सामान ही बताई गई थी। यही नही 14 वी शताब्दी मे लिखे गए शारंगध्रर संहिता और 15वी शताब्दी मे लिखे गए आयुर्वेद के लघुत्तर ग्रंथ की श्रेणी में आने वाले एवं रोग एवं उपचार के वर्णन के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले भाव प्रकाश ग्रंथ में कोविड-19 बीमारी की तरह ही इसके लक्षणों को दर्शाते हुए श्वसनक ज्वर एवं विषम सन्निपात ज्वर का उल्लेख किया गया था और इसके उपचार की विधियों का भी विस्तृत रूप से वर्णन किया गया था। सिविल लाइन रुद्रपुर स्थित विजय आयुर्वेदिक क्लीनिक के स्वामी एवं आयुर्वेद में एमडी डाॅक्टर विजय मिश्रा के अनुसार आयुर्वेद के महान ऋषि-मुनियों एवं ज्ञानियों द्वारा आज से कई सदियों पूर्व ही इस व्याधियों का वर्णन करते हुए विस्तृत रूप से इसके लक्षण एवं उपचार बता दिए गए थे। आयुर्वेदिक के महान ग्रंथ चरक संहिता मे संतत एवं सतत ज्वर,14 वी शताब्दी मे लिखे गए शारंगध्र संहिता और 15वी शताब्दी मे लिखे गए भाव प्रकाश ग्रंथ में श्वसनक ज्वर एवं विषम सन्निपात ज्वर का उल्लेख किया गया है। इन व्याध्यिों के लक्षण वर्तमान कोरोना बीमारी के लक्षणों के सामान ही वर्णित है। डाॅ मिश्रा ने बताया कि आयुर्वेद का ग्रंथ शारंगध्र एवं भाव प्रकाश संहिता में सन्निपात ज्वर का उल्लेख किया गया है। जिसमे 13 प्रकार के ज्वर बताये गए है। इन ज्वर मे 1 श्वसनक ज्वर है जिसके लक्षण वर्तमान कोविड 19 के लक्षण के सामान ही है। जिसे गंभीर निमोनिया भी कहा गया है। जो वात, पित्त और कफ तीनों के असंतुलित होने के कारण होता है। डाॅ मिश्रा के अनुसार शारंगध्र एवं भाव प्रकाश ग्रंथ में श्वसनक ज्वर को आगुंतज ज्वर कहा गया है अर्थात यह बीमारी कीटाणुओं के फैलने से बढती है और महामारी का रूप भी धरण कर लेती है। वर्तमान मे कोविड-19 का कीटाणु भी फैलने की वजह से पूरे विश्व को अपनी चपेट मे ले चुका है। डाॅ मिश्रा के अनुसार कोरोना संक्रमित मनुष्य की वात, पित्त और कफ तीनों चीजें असंतुलित हो जाती हैं। यदि संक्रमित रोगी को वात,पित्त और कफ को संतुलित करने के लिए औषध्यिां प्रदान की जाए तो वह जल्दी स्वस्थ हो जाता है। जिसमें स्वर्ण भस्म सहित कई भस्म रोगी को दी जाती हैं। डाॅ मिश्रा का कहना है कि वह अब तक 97 मरीजों को स्वस्थ कर चुके हैं।उन्होंने बताया कि कई मरीजों का आक्सीजन लेवल 70-72 तक पहुंचा हुआ था। उन्हें आक्सीजन भी दी गई। उनका माॅडर्न चिकित्सा के साथ- साथ आयुर्वेदिक उपचार किया गया जिसके चलते वह शीघ्र स्वस्थ हो गए। कोरोना से पीड़ित व्यक्ति का ओज क्षय होने लगता है। मेटाबाॅलिज्म बिगड़ जाता है इसलिए उसे स्वर्ण भस्म सहित कई औषध्यिों की सूक्ष्म खुराक दी जाती है और वे शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है। डाॅ मिश्रा का कहना है कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति को दूध्, घी, दही आदि ऐसी चीजें जो कफ को बढ़ाती हो, उनका सेवन नही करना चाहिए। शरीर में कफ,वात और पित्त का संतुलन न बिगड़े ऐसा सुपाच्य भोजन ग्रहण करना चाहिए।
कोरोना का संक्रमण खत्म होने के बाद भी मरीजों को उपचार की आवश्यकता
रुद्रपुर। आयुर्वेदिक औषधियों एवं अपने तजुर्बे के आधार पर आयुर्वेदिक में एमडी डाॅक्टर विजय मिश्रा अभी तक 97 से अधिक कोरोना मरीज को पूर्ण रूप से स्वस्थ कर चुके हैं। डाॅ मिश्रा ने बताया कि उनके पास पहुंचे कई मरीजों की स्थिति काफी नाजुक थी, जिन्हें माॅडर्न चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेदिक औषधियां दी गई। जिसका परिणाम यह हुआ कि वह बहुत जल्दी स्वस्थ हो गए। कई मरीजों का आक्सीजन लेवल 70 प्रतिशत था जिन्हें आयुर्वेदिक औषधियों के साथ-साथ आक्सीजन थेरेपी दी गई और बाद में वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए। डाॅ मिश्रा ने बताया कि आयुर्वेदिक उपचार के द्वारा अब तक 97 से अधिक मरीजों को स्वास्थ्य किया जा चुका है जिनमें मेडिकल काॅलेज मेरठ की सुनीता, रुद्रपुर के सुमित सक्सेना,एके शिनाॅय, ऋषि कुमार, आशी तिवारी,पारुल गर्ग, गौरव गर्ग,हेमा वर्मा, नारायण गुरु जी, बिलासपुर की विनीता शर्मा, अरविंद शर्मा, डाॅक्टर आफाक खान, सचिन गुप्ता,श्वेता गुप्ता, एडवोकेट अरविंद गुप्ता,ओम प्रकाश रस्तोगी,रेनू रस्तोगी और नोएडा के महिंदर जिंदल सहित तमाम ऐसे मरीज आयुर्वेदिक उपचार के कारण पूर्ण रूप से स्वस्थ हुए हैं। कोरोना संक्रमण सही होने के बाद भी शरीर में इसका दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है, जिसकी वजह से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। डाॅक्टर मिश्रा ने बताया कि कोरोना संक्रमण के सही होने के बाद भी शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हो पा रहा है। कई मरीजों में भूख ना लगने की समस्या, शुगर बढ़ जाना, कमजोरी रहना, त्वचा संबंध्ति रोग हो जाना आम बात हो गई है। डाॅ मिश्रा ने बताया कि आयुर्वेदिक में इन सब व्याध्यिों का बेहतर उपचार उपलब्ध् है। यदि समय रहते आयुर्वेदिक उपचार शुरू कर दिया जाए तो इन व्याध्यिों पर शीघ्र काबू पाया जा सकता है और मरीज पूर्ण रूप से स्वस्थ हो सकता है। श्री मिश्रा ने बताया कि उनके पास ऐसे कई मरीज आ रहे है जिनका कोरोना संक्रमण तो सही हो चुका है लेकिन अन्य दिक्कतों से परेशान है। ऐसे मरीजों का आयुर्वेदिक उपचार किया जा रहा है, जिनमें पहले की अपेक्षा काफी सुधर हो रहा है। डाॅ मिश्रा ने कहा कि ऐसे मरीजों को समय रहते ही अपना उपचार कराना चाहिए ताकि उनकी बीमारी असाध्य ना हो।
कोरोना संक्रमण से मुक्ति पा चुके मरीज रखे विशेष ध्यान
रुद्रपुर। कोरोना संक्रमण से मुक्ति पा चुके मरीजों को फंगस जैसी बीमारी का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे मरीजों को कोरोना की रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी विशेष रूप से अपना ध्यान रखना जरूरी है। डाॅ विजय मिश्रा बताते हैं कि कोरोना संक्रमण से मुक्ति पा चुके लोगों की इम्युनिटी कम हो जाती है और उन्हें त्वचा रोग होने की ज्यादा संभावना रहती है और फंगस की बीमारी भी त्वचा से ही शरीर में प्रवेश करती है। डाॅ मिश्रा बताते हैं कि आयुर्वेद में ब्लैक,वाइट एवं येलो फंगस तीनों का उपचार है, समय रहते यदि फंगस का उपचार कराया जाए तो इसमें शत प्रतिशत सफलता मिलती है। डाॅ मिश्रा बताते हैं कि चरक संहिता में रस धातु,रक्त धातु, और मज्जा धातु की तीनों बीमारियों का उल्लेख है, जिसमें मनुष्य को गिलोय का जूस,नीम का जूस, सारिवा का रस और शतावर के रस का सेवन करने से काफी लाभ प्राप्त होता है। श्री मिश्रा का कहना है कि बुखार उतरने के बाद ठंडे पानी से स्नान नहीं करना चाहिए और दिन में सोना नहीं चाहिए। इसके साथ ही रोगी को सुपाच्य भोजन ग्रहण करना चाहिए ताकि उसका वात,पित्त और कफ का संतुलन बना रहे।ऐसा करने से मनुष्य को त्वचा रोग नहीं होते जिसकी वजह से उसे फंगस होने का डर नहीं रहता। यदि ऐसा किया जाए तो रोगी को काफी लाभ प्राप्त होता है।
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