‘धामी राज’ में अब धरातल पर दिख रही ‘भ्रष्टाचार से जंग’

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उत्तराखंड के इतिहास में दूसरी बार किसी सीएम ने दिखाया आईएएस को सस्पेंड करने का साहस

 

देहरादून। धामी सरकार का भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड का नारा अब धरातल पर आकार लेता नजर आने लगा है और आमतौर पर सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारी के भ्रष्ट कारनामों के विरुद्ध फाइलों में ही दफन हो जाने वाली अनुशासनात्मक कार्यवाही, इन दिनों अपने अंजाम तक पहुंचती नजर आने लगी है। विगत दिनों हरिद्वार के चर्चित भूमि घोटाले में डीएम कमेंद्र सिंह का निलंबन सुनिश्चित करने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, उत्तराखंड के दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री बन गए ,जिसने किसी डीएम को पद पर रहने के दौरान निलंबित करने का साहस दिखाया है। सीएम धामी की इस धाकड़ कार्यवाही ने यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि उनके राज में भ्रष्टाचार की बड़ी मछलियों को भी नहीं बक्शा जायेगा ।देखा जाए तो  ये दूसरा मामला है जब जिलाधिकारी के पद पर रहते हुए उत्तराखंड में किसी आईएएस अधिकारी पर कार्रवाई हुई है। डीएम को सस्पेंड करने का ये पहला मामला है। इससे पहले पटवारी भर्ती घोटाले में डीएम का टर्मिनेशन हुआ था। तब तत्कालीन सीएम नारायण दत्त तिवारी के समय पौड़ी के डीएम एसके लाम्बा बखार्स्त किये गए गए थे।बात उस समय की है जब राज्य गठन के बाद पहली बार पटवारी की भर्ती होनी थी। साल 2002 के अंत में नारायण दत्त तिवारी सरकार ने इस भर्ती को करवाने का निर्णय लिया था। उस वक्त उत्तराखंड सरकार में राजस्व मंत्री की कमान हरक सिंह रावत के पास थी। यह भर्ती पौड़ी के तत्कालीन सीडीओ कुंवर राज कुमार और तत्कालीन जिलाधिकारी एसके लाम्बा के अंडर हो रही थीं। उसे समय भर्तियों में अनियमितता पाए जाने के बाद डीएम को पहले सस्पेंड किया गया और बाद में उनकी बखार्स्तगी हो गई। जहां तक हरिद्वार जमीन घोटाले का संबंध है तो जांच रिपोर्ट प्राप्त होने के उपरांत बड़ा एक्शन लेते हुए जहां धामी सरकार ने हरिद्वार के जिलाधिकारी कमेंद्र सिंह के अलावा एक आईएएस और पीसीएस अधिकारियों को निलंबित किया है ।वहीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले में विजिलेंस जांच के आदेश भी दिए हैं।शुरुआती कार्रवाई में अभी तक शासन ने कुल दस अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया है, जबकि एक कर्मचारी की सेवा समाप्त और एक का सेवा विस्तार समाप्त किया है। मुख्यमंत्री ने पूरे प्रकरण की विस्तृत जांच सतर्कता विभाग से कराए जाने के निर्देश दिए हैं, ताकि दोषियों की पूरी श्रृंखला का खुलासा हो सके और पारदर्शिता बनी रहे।इसके अलावा भूमि घोटाले से संबंधित विक्रय पत्र को निरस्त करते हुए भूस्वामियों को दिए गए धन की रिकवरी सुनिश्चित करने के सख्त निर्देश भी दिए गए हैं। मुख्यमंत्री ने तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी के कार्यकाल के दौरान नगर निगम हरिद्वार में हुए सभी कार्यों का विशेष ऑडिट कराए जाने के निर्देश दिए हैं, ताकि वित्तीय अनियमितताओं की समुचित जांच की जा सके। दरअसल, इस भूमि घोटाले को वर्ष 2024 में बड़े ही शातिर तरीके से अंजाम दिया गया था। साल 2024 में निकाय चुनाव के दौरान हरिद्वार नगर निगम का पूरा सिस्टम नगर आयुक्त के पास था। उस वक्त हरिद्वार नगर आयुक्त की जिम्मेदारी आईएएस वरुण चौधरी के पास थी। नगर निकाय चुनाव के कारण हरिद्वार जिले में आचार संहिता लगी हुई थी, तभी हरिद्वार नगर निगम ने 33 बीघा जमीन खरीदी थी। ये जमीन किस उद्देश्य से खरीदी गई थी, ये अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है।जांच में अभी तक जो सामने आया है, उसके मुताबिक जो जमीन खरीदी गई है, उसके आसपास के इलाके में हरिद्वार नगर निगम का कूड़ा डंप किया जाता रहा है। इसीलिए वहां पर जमीन की कीमत कुछ ज्यादा नहीं थी, लेकिन नगर निगम और प्रशासन के कुछ अधिकारियों ने कृषि भूमि को 143 में दर्ज करवाकर सरकारी बजट से 58 करोड़ रुपए में खरीदा। हरिद्वार नगर निगम में बीजेपी की मेयर प्रत्याशी की जीत के बाद ये मामला उजागर हुआ और धीरे-धीरे ये मामला राजनीतिक मुद्दा बन गया तथा आगे चलकर उपरोक्त मामला सीएम दफ्तर तक पहुंच गया। इसके बाद सीएम धामी ने जांच के आदेश दिए और सचिव रणवीर सिंह चौहान को जांच सौंपी गई। सचिव रणवीर सिंह चौहान की जांच रिपोर्ट के बाद ही मुख्यमंत्री धामी ने भ्रष्टाचार पर यह बड़ा प्रहार किया।

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